रविवार, 29 अगस्त 2021

जब ढली थी शाम देखा था मैंने नूर उसके चेहरे का

 


उल्फ़ते उसकी क्या करे 

जब खुदा को मंजूर न हो , 

शिकायते करे भी तो किससे करे 

जब खुदा ही उसका गुरुर हो 

जब ढली थी शाम देखा था मैंने नूर उसके चेहरे का

 फिर नशा भी करे तो किसका करे 

जब सुरूर हो उसके नशे का

 की जब वो पलट के देखते है 

मनो दुनिया थम सी जाती है 

फिर ये उल्फ़ते शिकायतें शिकवा किस बात की

 फिर कहे भी तो किससे कहे जब खुदा ही उसका गुरुर हो 

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