शनिवार, 19 सितंबर 2020

चार सींग वाला मृग [FOUR HORNED ANTELOPE] फुल विश्लेषण

चार सींग वाला मृग [FOUR HORNED ANTELOPE]  फुल विश्लेषण 

चौसिंगा
*VU- श्रेणी -1 का जीव है 
*भारत और नेपाल के खुले जंगलो में पाए जाते है   भारत में  गंगा के दक्षिण से तमिलनाडु तक  पाए जाते है ओडिशा  और गिर राष्ट्रीय उद्यान में भी इनकी  उपस्थिति देखी जाती है 
*कृषि विस्तार के कारण इनके आवास में कमी देखी जा सकती है इसके आलावा शिकार   दिखाई देते है 

*चौसिंगा, जिसे अंग्रेज़ी में Four-horned Antelope कहते हैं, एक छोटा बहुसिंगा है। यह टॅट्रासॅरस प्रजाति में एकमात्र जीवित जाति है और भारत तथा नेपाल के खुले जंगलों में पाया जाता है। चौसिंगा एशिया के सबसे छोटे गोकुलीय प्राणियों में से हैं।

 *
प्राणी

विवरण

जानकारी

चौसिंगा, जिसे अंग्रेज़ी में Four-horned Antelope कहते हैं, एक छोटा बहुसिंगा है। यह टॅट्रासॅरस प्रजाति में एकमात्र जीवित जाति है और भारत तथा नेपाल के खुले जंगलों में पाया जाता है। चौसिंगा एशिया के सबसे छोटे गोकुलीय प्राणियों में से हैं। 
वैज्ञानिक नामTetracerus quadricornis
लंबाई100 सें.मी. (वयस्क) 
संरक्षण की स्थितिभेद्य (जनसंख्या कम हो रही) 
द्रव्यमान19 kg (वयस्क) 

       TO HELP THIS PAGE PLEASE DONATE AS YOU WANT THIS ACCOUNT 

 AC. NUMBER= 36609315710
IFSC CODE= SBIN0007191
 AC. HOLDER NAME= AJEET KUMAR
 BRANCH= GOHARI , PHAPHAMAU, PRAYAGRAJ 
GOOGLEPAY OR PHONEPAY OR JIOPAY PAYTM =- 9695500382

*

विवरण में अध्ययन करे 

इसकी कंधे तक की ऊँचाई ५५-६४ से.मी. तक होती है और वज़न १७-२४ कि. तक होता है। इसकी खाल पीली-भूरी या लाली लिये हुये होती है जो पेट और अंदरुनी टांगों में सफ़ेद होती है। इसकी टांगों की बाहरी तरफ़ काले बालों की एक धारी होती है। मादा के चार थन होते हैं जो कि उदर के बहुत पीछे की तरफ़ होते हैं।


इसका जो विशिष्ट चिन्ह होता है वह है इसके चार सींग, जो जंगली स्तनपायी में अद्वितीय होता है और जिसकी वजह से इसका नाम पड़ा है। यह सींग केवल नरों में पाये जाते हैं। प्रायः दो सींग कानों के बीच में तथा दो आगे की तरफ़ माथे में होते हैं। सींगों का पहला जोड़ा जन्म के कुछ माह में ही उग जाता है जबकि दूसरा जोड़ा १०-१४ माह की आयु में उगता है। अन्य बहुसिंगियों के विपरीत इनके सी़ंग नहीं झड़ते हैं हालांकि लड़ाई के दौरान यह क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। सब वयस्क नरों के सींग नहीं होते हैं, विशेषकर टॅट्रासॅरस क्वॉड्रिकॉरनिस सबक्वॉड्रिकॉरनिस उपजाति के नरों में, जिनके आगे के सींग की जगह बिना बालों वाले उभार ही होते हैं। पिछले सींग ७-१० से.मी. तक लम्बे होते हैं जबकि अगले सींग काफ़ी छोटे होते हैं और प्रायः २-५ से.मी. लम्बे होते हैं।


आवासीय क्षेत्र

चौसिंगे का आवासीय क्षेत्र

ज़्यादातर चौसिंगा भारत में ही पाया जाता है। छिट-पुट आबादी नेपाल के कुछ इलाकों में भी पाई जाती है। इनकी आबादी गंगा के मैदानों के दक्षिण से लेकर तमिल नाडु तक, तथा पूर्व में ओडीशा तक पाई जाती है। पश्चिम में यह गीर राष्ट्रीय उद्यान में पाया जाता है।


चौसिंगा अपने आवासीय क्षेत्र में वैसे तो कई क़िस्म के पर्यावरण में रहता है, लेकिन इसे खुले शुष्क पतझड़ी वनों के ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी इलाके अधिक पसन्द हैं।

यह ज़्यादा घनत्व के वनस्पती वाले तथा ऊँची घास के इलाके में रहते हैं जो कि जल-स्रोत के समीप हो। प्रायः मनुष्यों की आबादी वाले क्षेत्रों से दूर रहता है।

 इसके प्रमुख शिकारी बाघ,तेंदुआ और ढोल होते हैं

उपजाति

इसकी तीन उपजातियाँ पहचानी जाती हैं:

  • टॅट्रासॅरस क्वॉड्रिकॉरनिस क्वॉड्रिकॉरनिस
  • टॅट्रासॅरस क्वॉड्रिकॉरनिस इओडीस
  • टॅट्रासॅरस क्वॉड्रिकॉरनिस सबक्वॉड्रिकॉरनिस

*

व्यवहार 

चौसिंगा प्रायः एकाकी प्राणी है, हालांकि दो से चार प्राणियों के समूह भी देखे गये हैं। यह अपने इलाके में ही रहना पसन्द करता है तथा ज़्यादा विचरण नहीं करता है और ज़रुरत पड़ने पर अपने इलाके की रक्षा भी कर सकता है। प्रजनन ॠतु में नर अन्य नरों के प्रति आक्रामक हो जाता है। वयस्क एक दूसरे से या शावकों से सम्पर्क स्थापित करने के लिए या परभक्षी को देखने पर विभिन्न ध्वनियाँ निकालते हैं। यह गन्ध के ज़रिए, अपने इलाके में मल त्याग करके या आँखों के सामने बनी गन्ध ग्रन्थियों को वनस्पती में रगड़कर भी एक दूसरे से सम्पर्क करते हैं।


यह शाकाहारी प्राणी है जो कोमल पत्तियाँ, फल तथा फूल खाता है। हालांकि जंगलों में इसके आहार के बारे में सटीक तथ्य उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन कृत्रिम प्रयोगों के दौरान यह पाया गया है कि इसे आलू बुख़ाराआंवलाबहिनिया तथा बबूल के फल अधिक पसन्द हैं।


प्रजनन

चौसिंगा के सिर का रेखाचित्र

प्रजनन काल प्रायः मई से जुलाई तक होता है तथा वर्ष के बाकी समय नर और मादा अलग-अलग ही रहते हैं। मिलन के व्यवहार में दोनों घुटनों के बल बैठकर एक दूसरे से गर्दन लड़ाते हैं। इसके पश्चात नर विधिवत् अकड़कर चलता है। गर्भ काल क़रीब आठ महीने का होता है और उसके उपरान्त एक से दो शावक पैदा होते हैं। जन्म के समय शावक ४२-४६ से.मी. लम्बा होता है तथा ०.७४-१.१ कि. वज़नी होता है। शावक अपनी माँ के साथ क़रीब एक साल रहता है और दो साल की आयु में यौन वयस्कता प्राप्त करता है।


*

संरक्षण

दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक में रहने के कारण चौसिंगे का प्राकृतिक आवास कृषि भूमि के हाथों घटता जा रहा है। इसके अलावा चौसिंगा की चार सींग की अद्भुत खोपड़ी के कारण यह अवैध शिकारियों का प्रिय लक्ष्य होता है। यह अनुमान है कि केवल क़रीब १०,००० चौसिंगे जंगली हालात में मौजूद हैं, जिसमें से ज़्यादा संख्या संरक्षित उद्यानों में रहती है। यह प्राणी भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत संरक्षित है तथा भारत में इसके संरक्षण के बारे में सराहनीय क़दम उठाये जा रहे हैं।


*

जगत:जंतु
संघ:रज्जुकी
वर्ग:स्तनपायी
गण:द्विखुरीयगण
कुल:बोविडी
उपकुल:बोविनी
वंश:टॅट्रासॅरस
लीच, १८२५
जाति:टी. क्वॉड्रिकॉरनिस



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें