वैदिक सभ्यता का सम्पूर्ण ज्ञान ;=
Geographical range | भारतीय उपमहाद्वीप |
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Period | कांस्य युग भारत |
Dates | ल. 1500 |
Preceded by | सिंधु घाटी सभ्यता |
Followed by | उत्तर वैदिक काल, कुरु साम्राज्य, पाञ्चाल |
Geographical range | भारतीय उपमहाद्वीप |
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Period | लौह युग भारत |
Dates | ल. 1100 |
Preceded by | प्रारंभिक वैदिक काल |
Followed by | हर्यक वंश, महाजनपद |
* नाम और देशकाल
वैदिक सभ्यता का नाम ऐसा इस लिए पड़ा कि वेद उस काल की जानकारी का प्रमुख स्रोत हैं। वेद चार है - ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद। इनमें से ऋग्वेद की रचना सबसे पहले हुई थी। ऋग्वेद में ही गायत्री मन्त्र है जो सविता(सूर्य) को समर्पित है।
ऋग्वेद के काल निर्धारण में विद्वान एकमत नहीं है। सबसे पहले मैक्स मूलर ने वेदों के काल निर्धारण का प्रयास किया। उसने बौद्ध धर्म (550 ईसा पूर्व) [3]से पीछे की ओर चलते हुए वैदिक साहित्य के तीन ग्रंथों की रचना को मनमाने ढंग से 200-200 वर्षों का समय दिया और इस तरह ऋग्वेद के रचना काल को 1200 ईसा पूर्व के करीब मान लिया पर निश्चित रूप से उसके आंकलन का कोई आधार नहीं था।
वैदिक काल को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है- ऋग्वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल। ऋग्वैदिक काल आर्यों के आगमन के तुरंत बाद का काल था जिसमें कर्मकांड गौण थे पर उत्तरवैदिक काल में हिन्दू धर्म में कर्मकांडों की प्रमुखता बढ़ गई।
== ऋग्वैदिक काल ==(1500-1000 ई.पू.)
इस काल की तिथि निर्धारण जितनी विवादास्पद रही है उतनी ही इस काल के लोगों के बारे में सटीक जानकारी। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि इस समय तक केवल इसी ग्रंथ (ऋग्वेद) की रचना हुई थी। मैक्स मूलर के अनुसार आर्य का मूल निवास मध्य ऐशिया है।आर्यो द्वारा निर्मित सभ्यता वैदिक काल कहलाई। आर्यो द्वारा विकसित सभ्य्ता ग्रामीण सभ्यता कहलायी। आर्यों की भाषा संस्कृत थी।
मैक्स मूलर ने जब अटकलबाजी करते हुए इसे 1200 ईसा पूर्व से आरंभ होता बताया था (लेख का आरंभ देखें) उसके समकालीन विद्वान डब्ल्यू. डी. ह्विटनी ने इसकी आलोचना की थी। उसके बाद मैक्स मूलर ने स्वीकार किया था कि " पृथ्वी पर कोई ऐसी शक्ति नहीं है जो निश्चित रूप से बता सके कि वैदिक मंत्रों की रचना 1000 ईसा पूर्व में हुई थी या कि 1500 ईसापूर्व में या 2000 या 3000 "।[4]
ऐसा माना जाता है कि आर्यों का एक समूह भारत के अतिरिक्त ईरान (फ़ारस) और यूरोप की तरफ़ भी गया था। ईरानी भाषा के प्राचीनतम ग्रंथ अवेस्ता की सूक्तियां ऋग्वेद से मिलती जुलती हैं। अगर इस भाषिक समरूपता को देखें तो ऋग्वेद का रचनाकाल 1000 ईसापूर्व आता है। लेकिन बोगाज-कोई (एशिया माईनर) में पाए गए 1400 ईसा पूर्व के अभिलेख में हिंदू देवताओं इंद, मित्रावरुण, नासत्य इत्यादि को देखते हुए इसका काल और पीछे माना जा सकता है।
बाल गंगाधर तिलक ने ज्योतिषीय गणना करके इसका काल 6000 ई.पू. माना था। हरमौन जैकोबी ने जहाँ इसे 4500 ईसापूर्व से 2500 ईसापूर्व के बीच आंका था वहीं सुप्रसिद्ध संस्कृत विद्वान विंटरनित्ज़ ने इसे 3000 ईसापूर्व का बताया था।
प्रशासन
प्रशासन की सबसे छोटी इकाई कुल थी। एक कुल में एक घर में एक छत के नीचे रहने वाले लोग शामिल थे। परिवार के मुखिया को कुलुप कहा जाता था। एक ग्राम कई कुलों से मिलकर बना होता था। ग्रामों का संगठन विश् कहलाता था और विशों का संगठन जन। कई जन मिलकर राष्ट्र बनाते थे। ग्राम के मुखिया को ग्रामिणी, विश का प्रधान विशपति ,
जन का शासक राजन् (राजा) तथा राष्ट्र के प्रधान को सम्राट कहते थे। आर्यों की प्रशासनिक संस्थाएं काफी सशक्त अवस्था में थी। प्रारंभ में राजा का चुनाव जनता के द्वारा किया जाता था बाद में उसका पद धीरे-धीरे पैतृक होता चला गया परंतु राजा निरंकुश नहीं होता था वह जनता की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी लेता था इस सुरक्षा व्यवस्था के बदले में लोग राजा को स्वैच्छिक कर देते थे जिसे बलि कहा जाता था। ऋग्वैदिक आर्यों की दो महत्वपूर्ण राजनैतिक संस्थाएं थीं जिन्हें सभा और समिति कहा जाता था-[5]
१."सभा-" इसे उच्च सदन भी कहा जा सकता है यह समाज से आए हुए बुद्धिमान और अनुभवी व्यक्तियों की संस्था थी। सभा के सदस्यों को सभेय अथवा सभासद कहा जाता था और सभा का अध्यक्ष सभापति कहा जाता था सभा के सदस्यों को पितर कहा जाता था जिससे पता लगता है कि ये बुजुर्ग और अनुभवी लोग थे।
२. "समिति-" समिति आम जनमानस की संस्था थी उसके सदस्य समस्त नागरिक होते थे इसमें सामान्य विषयों पर चर्चा होती थी । उसके अध्यक्ष को ईशान कहा जाता था। प्रारंभ में समिति में स्त्रियां भी आती थी और उसमें आकर ऋक नामक गान किया करती थी। आर्यों की सबसे प्राचीन संस्था को जनसभा थी उसे "विदथ" कहा जाता था।
धर्म
ऋग्वैदिक काल में प्राकृतिक शक्तियों की ही पूजा की जाती थी और कर्मकांडों की प्रमुखता नहीं थी। ऋग्वैदिक काल धर्म की॑ अन्य विशेषताएं • क्रत्या, निऋति, यातुधान, ससरपरी आदि के रूप मे अपकरी शक्तियो अर्थात, राछसों, पिशाच एवं अप्सराओ का जिक्र दिखाई पडता है। इस समय में मूर्ति पूजन नहीं होता था और ना ही मंत्रोचार किया जाता था। कर्मकांड जैसे पूजा-पाठ, व्रत,यज्ञ आदि इस काल में नहीं होते थे।
वैदिक सभ्यता ;==
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) के पश्चात भारत में जिस नवीन सभ्यता का विकास हुआ उसे ही आर्य(Aryan) अथवा वैदिक सभ्यता(Vedic Civilization) के नाम से जाना जाता है। इस काल की जानकारी हमे मुख्यत: वेदों से प्राप्त होती है, जिसमे ऋग्वेद सर्वप्राचीन होने के कारण सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वैदिक काल को ऋग्वैदिक या पूर्व वैदिक काल (1500 -1000 ई.पु.) तथा उत्तर वैदिक काल (1000 - 600 ई.पु.) में बांटा गया है।वैदिक काल, या वैदिक समय (c. 1500 - c.500 ईसा पूर्व), शहरी सिंधु घाटी सभ्यता के अंत और उत्तरी मध्य-गंगा में शुरू होने वाले एक दूसरे शहरीकरण के बीच उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में अवधि है। सादा c. 600 ई.पू. इसका नाम वेदों से मिलता है, जो इस अवधि के दौरान जीवन का विवरण देने वाले प्रख्यात ग्रंथ हैं जिन्हें ऐतिहासिक माना गया है और अवधि को समझने के लिए प्राथमिक स्रोतों का गठन किया गया है। संबंधित पुरातात्विक रिकॉर्ड के साथ ये दस्तावेज वैदिक संस्कृति के विकास का पता लगाने और अनुमान लगाने की अनुमति देते हैं।[1]
वेदों की रचना और मौखिक रूप से एक पुरानी इंडो-आर्यन भाषा बोलने वालों द्वारा सटीक रूप से प्रेषित की गई थी, जो इस अवधि के शुरू में भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में चले गए थे। वैदिक समाज पितृसत्तात्मक और पितृसत्तात्मक था। आरंभिक वैदिक आर्य पंजाब में केंद्रित एक कांस्य युग के समाज थे, जो कि राज्यों के बजाय जनजातियों में संगठित थे, और मुख्य रूप से जीवन का एक देहाती तरीका था। चारों ओर सी। 1200–1000 ई.पू., वैदिक आर्य पूर्व में उपजाऊ पश्चिमी गंगा के मैदान में फैल गए और उन्होंने लोहे के उपकरण अपना लिए, जो जंगल को साफ करने और अधिक व्यवस्थित, कृषि जीवन को अपनाने की अनुमति देते थे। वैदिक काल के उत्तरार्ध में भारत, और कुरु साम्राज्य के रूढ़िवादी यज्ञ अनुष्ठान के लिए एक जटिल सामाजिक विभेदीकरण, शहरों, राज्यों और एक जटिल सामाजिक भेदभाव के उद्भव की विशेषता थी। इस समय के दौरान, केंद्रीय गंगा मैदान एक संबंधित लेकिन गैर-वैदिक इंडो-आर्यन संस्कृति का प्रभुत्व था। वैदिक काल के अंत में सच्चे शहरों और बड़े राज्यों (महाजनपद कहा जाता है) के उदय के साथ-साथ asramaśa आंदोलनों (जैन धर्म और बौद्ध धर्म सहित) में वृद्धि हुई, जिसने वैदिक रूढ़िवाद को चुनौती दी।
वैदिक काल में सामाजिक वर्गों के वर्णानुक्रम का उदय हुआ जो प्रभावशाली रहेगा। वैदिक धर्म यज्ञ परक था तथा इस काल की वर्ण व्यवस्था कार्यानुसार थी।
वैदिक सामग्री संस्कृति के चरणों से पहचानी जाने वाली पुरातात्विक संस्कृतियों में गेरू की कब्र संस्कृति, काले और लाल वेयर संस्कृति और चित्रित ग्रे वेयर संस्कृति में गेरू रंग की बर्तनों की संस्कृति शामिल है।[2]
वेदों के अतिरिक्त संस्कृत के अन्य कई ग्रंथो की रचना भी 4-5 ई.पू काल में हुई थी। वेदांगसूत्रौं की रचना मन्त्र ब्राह्मणग्रंथ और उपनिषद इन वैदिकग्रन्थौं को व्यवस्थित करने मे हुआ है। अनन्तर रामायण, महाभारत,और पुराणौंकी रचना हुआ जो इस काल के ज्ञानप्रदायी स्रोत मानागया हैं। अनन्तर चार्वाक , तान्त्रिकौं ,बौद्ध और जैन धर्म का उदय भी हुआ।
इतिहासकारों का मानना है कि आर्य मुख्यतः उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में रहते थे इस कारण आर्य सभ्यता का केन्द्र मुख्यतः उत्तरी भारत था। इस काल में उत्तरी भारत (आधुनिक पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा नेपाल समेत) कई महाजनपदों में बंटा था। आर्यों का आगमन मध्य एशिया से हुआ।
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